लीज होल्ड और फ्री होल्ड प्रॉपर्टी का परिचय
भारत में जब भी आप प्रॉपर्टी खरीदने या बेचने का सोचते हैं, तो अक्सर दो शब्द सुनने को मिलते हैं – लीज होल्ड और फ्री होल्ड प्रॉपर्टी। ये दोनों प्रॉपर्टी की कानूनी श्रेणियां हैं और इनका महत्व आपकी संपत्ति के अधिकारों से जुड़ा होता है। भारत जैसे देश में, जहां प्रॉपर्टी निवेश आम लोगों के लिए बड़ी आर्थिक उपलब्धि होती है, वहां इन दोनों टाइप्स का अंतर समझना बहुत जरूरी है। आइए जानते हैं कि आखिर लीज होल्ड और फ्री होल्ड प्रॉपर्टी क्या होती है और यह क्यों महत्वपूर्ण है।
प्रॉपर्टी टाइप | क्या है? | मालिकाना हक | महत्व |
---|---|---|---|
लीज होल्ड | यह वह प्रॉपर्टी होती है जिसे किसी निश्चित अवधि (जैसे 99 साल) के लिए किराए पर लिया जाता है। जमीन का असली मालिक सरकार या कोई अथॉरिटी होती है। | सीमित समय तक हक मिलता है, बाद में रिन्यूअल करना पड़ता है। | सस्ती होती है, लेकिन लंबे समय के लिए पूरी तरह अपने नाम नहीं होती। |
फ्री होल्ड | इसमें खरीदार को जमीन और उस पर बनी इमारत का पूरा मालिकाना हक मिलता है। कोई समय सीमा नहीं होती। | पूर्ण अधिकार, बिना किसी लिमिटेशन के ट्रांसफर या बिक्री कर सकते हैं। | कीमत ज्यादा होती है लेकिन संपत्ति पर पूरा नियंत्रण रहता है। |
भारत में इनका महत्व क्यों?
भारतीय बाजार में प्रॉपर्टी खरीदते समय लोग अक्सर कंफ्यूज रहते हैं कि कौन सी टाइप चुनें। लीज होल्ड प्रॉपर्टी आमतौर पर सरकारी अथॉरिटीज या डेवेलपर द्वारा दी जाती हैं और कम कीमत पर मिलती हैं। वहीं फ्री होल्ड प्रॉपर्टी में आपको अपनी इच्छा से कभी भी संपत्ति बेचने, गिफ्ट करने या वसीयत करने की आजादी मिलती है। यही वजह है कि फ्री होल्ड प्रॉपर्टी निवेशकों में ज्यादा पॉपुलर होती जा रही है। दोनों ही प्रकार की प्रॉपर्टी के अपने फायदे और नुकसान होते हैं, जो आगे की पार्ट्स में विस्तार से बताए जाएंगे।
2. लीज होल्ड प्रॉपर्टी के कानूनी पहलू
लीज होल्ड संपत्ति की कानूनी परिभाषा
लीज होल्ड प्रॉपर्टी उस संपत्ति को कहा जाता है जिसमें किसी व्यक्ति या संस्था को सीमित समय के लिए जमीन या बिल्डिंग का उपयोग करने का अधिकार मिलता है। इस प्रकार की संपत्ति में असली मालिक (फ्री होल्डर) सरकार, विकास प्राधिकरण या कोई अन्य संस्थान होता है, और लीज होल्डर सिर्फ निश्चित अवधि तक संपत्ति का इस्तेमाल कर सकता है। भारत में यह लीज अवधि आम तौर पर 30, 60, 90 या 99 साल की होती है।
लीज होल्ड संपत्ति की अवधि (Tenure)
अवधि | सामान्य उदाहरण |
---|---|
30 साल | सरकारी योजनाओं में आवासीय फ्लैट्स |
60 साल | कुछ राज्य सरकार की औद्योगिक भूमि |
99 साल | अधिकांश शहरी रिहायशी परियोजनाएँ (DDA, HUDA, NOIDA आदि) |
मालिकाना अधिकार (Ownership Rights)
लीज होल्ड में असली मालिकाना हक लीज देने वाले संस्थान/सरकार के पास रहता है। लीज होल्डर को सिर्फ उपयोग करने और कभी-कभी उप-लीज देने का अधिकार होता है। लीज खत्म होते ही सारी अधिकारिता मूल मालिक को वापस चली जाती है। भारत में कई बार लीज की अवधि पूरी होने पर नवीनीकरण (renewal) भी संभव होता है, लेकिन इसके लिए अतिरिक्त शुल्क देना पड़ता है और सभी नियमों का पालन करना जरूरी होता है। लीज होल्ड संपत्ति को बेचना, गिरवी रखना या विरासत में देना भी कुछ शर्तों के साथ ही संभव होता है।
भारत में लीज़ होल्ड संपत्तियों से जुड़ी आम शर्तें
- प्रत्येक वर्ष या निर्धारित अंतराल पर ग्राउंड रेंट (भूमि किराया) चुकाना अनिवार्य होता है।
- संपत्ति में कोई बड़ा बदलाव करने के लिए मालिक (authority) से अनुमति लेना जरूरी होता है।
- बेचने या ट्रांसफर करने पर अधिकतर मामलों में अथॉरिटी की मंजूरी लेनी पड़ती है एवं ट्रांसफर फीस देनी पड़ सकती है।
- लीज खत्म होने पर प्रॉपर्टी वापस अथॉरिटी के कब्जे में चली जाती है, जब तक कि इसका नवीनीकरण ना करवाया जाए।
- कई बार लीज होल्ड संपत्तियाँ बैंक से लोन लेने में फ्री होल्ड जितनी आसान नहीं मानी जातीं। बैंकों द्वारा वैल्यूएशन और अप्रूवल अलग-अलग हो सकते हैं।
संक्षिप्त तुलना: लीज़ होल्ड बनाम फ्री होल्ड (मुख्य बिंदु)
पैरामीटर | लीज होल्ड प्रॉपर्टी | फ्री होल्ड प्रॉपर्टी |
---|---|---|
मालिकाना अधिकार | सीमित अवधि के लिए उपयोग का अधिकार | पूर्ण स्वामित्व अधिकार हमेशा के लिए |
विरासत/ट्रांसफर करना | शर्तों एवं मंजूरी के बाद ही संभव | स्वतंत्र रूप से ट्रांसफर व विरासत में दे सकते हैं |
बैंक लोन सुविधा | कुछ मामलों में कठिनाइयाँ आ सकती हैं | आसान प्रक्रिया |
नवीनीकरण/फीस | समय-समय पर नवीनीकरण व फीस जरूरी | कोई नवीनीकरण नहीं, एकमुश्त खरीददारी |
इस प्रकार, भारत में लीज़ होल्ड संपत्तियों से जुड़े कानूनी पहलुओं को समझना बहुत जरूरी है, खासकर जब आप घर या जमीन खरीदने का सोच रहे हों। सही जानकारी आपको बेहतर निर्णय लेने में मदद करती है।
3. फ्री होल्ड प्रॉपर्टी के कानूनी पहलू
फ्री होल्ड प्रॉपर्टी में मालिकाना अधिकार
फ्री होल्ड प्रॉपर्टी का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें मालिक को संपत्ति पर पूर्ण अधिकार मिल जाता है। इसका मतलब है कि जमीन या घर खरीदने के बाद, उसका असली मालिक आप ही होते हैं। आपको किसी सरकारी अथवा प्राधिकरण से हर साल लीज रिन्यू कराने की जरूरत नहीं होती। पूरी संपत्ति आपके नाम पर रजिस्टर्ड होती है और आप उसे अपनी मर्जी से इस्तेमाल कर सकते हैं।
फ्री होल्ड प्रॉपर्टी की पंजीकरण प्रक्रिया
फ्री होल्ड प्रॉपर्टी की रजिस्ट्रेशन प्रक्रिया लीज होल्ड के मुकाबले सीधी और आसान होती है। संपत्ति की बिक्री या ट्रांसफर के समय स्टांप ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन फीस अदा करनी होती है, जिसके बाद संपत्ति आपके नाम पर दर्ज हो जाती है। आमतौर पर यह प्रक्रिया स्थानीय उप-पंजीयक (Sub-Registrar) कार्यालय में पूरी की जाती है। रजिस्ट्रेशन डॉक्युमेंट्स जैसे सेल डीड, पहचान पत्र, और एड्रेस प्रूफ जरूरी होते हैं।
फ्री होल्ड प्रॉपर्टी की ट्रांसफरबिलिटी
फ्री होल्ड संपत्ति को बेचने, गिफ्ट करने या विरासत में देने में कोई खास दिक्कत नहीं आती। मालिक जब चाहे, बिना किसी सरकारी अनुमति के, संपत्ति को ट्रांसफर कर सकता है। इससे न केवल परिवार को भविष्य में फायदा होता है, बल्कि बैंक से लोन लेना भी आसान हो जाता है क्योंकि बैंक भी फ्री होल्ड संपत्तियों को प्राथमिकता देते हैं।
लीज होल्ड और फ्री होल्ड प्रॉपर्टी के कानूनी अंतर – एक नजर में
विशेषता | फ्री होल्ड प्रॉपर्टी | लीज होल्ड प्रॉपर्टी |
---|---|---|
मालिकाना अधिकार | पूर्ण स्वामित्व (Absolute Ownership) | सीमित समय के लिए अधिकार (Lease Period Ownership) |
पंजीकरण प्रक्रिया | सीधी और सरल, केवल एक बार | लीज रिन्यूअल जरूरी, कई प्रक्रियाएं |
ट्रांसफरबिलिटी | आसान और स्वतंत्र ट्रांसफर | सरकारी अनुमति आवश्यक |
वारिस को देना | आसानी से संभव | नियमों के अनुसार सीमित |
बैंक लोन सुविधा | बैंकों द्वारा प्राथमिकता प्राप्त | कठिनाई अधिक, कई बार अस्वीकार भी होता है |
इन सभी कारणों से भारत में लोग फ्री होल्ड प्रॉपर्टी को ज्यादा पसंद करते हैं क्योंकि इसमें निवेश सुरक्षित रहता है और भविष्य में उपयोग करने या बेचने में किसी तरह की परेशानी नहीं होती।
4. लीज होल्ड और फ्री होल्ड में निवेश एवं वित्तीय प्रभाव
लीज होल्ड और फ्री होल्ड प्रॉपर्टी में निवेश: क्या फर्क है?
भारत में प्रॉपर्टी खरीदते समय निवेशकों के लिए सबसे बड़ा सवाल यह होता है कि लीज होल्ड लें या फ्री होल्ड? दोनों के अपने-अपने फायदे और कमियां हैं। आइए जानते हैं इन दोनों प्रकार की संपत्तियों में निवेश, वैल्यूएशन, और लोन जैसे वित्तीय पहलुओं का तुलनात्मक विश्लेषण।
निवेश पर असर
फ्री होल्ड प्रॉपर्टी में निवेश ज्यादा सुरक्षित माना जाता है क्योंकि यहां मालिकाना हक पूरी तरह आपके पास होता है। आप इसे बेच सकते हैं, किराए पर दे सकते हैं या विरासत में दे सकते हैं। वहीं, लीज होल्ड प्रॉपर्टी में जमीन सरकार या प्राधिकरण की होती है और एक निश्चित अवधि (जैसे 99 साल) के लिए आपको उसका उपयोग करने दिया जाता है। इसलिए इसका रिसेल वैल्यू थोड़ा कम हो सकता है।
वैल्यूएशन का फर्क
मापदंड | लीज होल्ड | फ्री होल्ड |
---|---|---|
मूल्यांकन (Valuation) | कम होता है, समय के साथ घट सकता है | उच्च, बाजार रेट के बराबर होता है |
बिक्री योग्य (Resale Value) | सीमित, खरीदार कम मिलते हैं | आसान बिक्री, खरीदार अधिक मिलते हैं |
उत्तराधिकार अधिकार (Inheritance) | सीमित या शर्तों के साथ मिलता है | पूरी तरह ट्रांसफरेबल |
होम लोन पर असर
अगर आप बैंक से लोन लेना चाहते हैं तो फ्री होल्ड प्रॉपर्टी पर लोन आसानी से मिल जाता है और ब्याज दर भी कम होती है। लीज होल्ड प्रॉपर्टी पर लोन मिलने में दिक्कत आ सकती है या लिमिटेड टेन्योर के लिए ही मिलता है क्योंकि बैंक को सुरक्षा की गारंटी कम महसूस होती है। इसके अलावा कई बार बैंक लीज की बची हुई अवधि को देखकर ही लोन अप्रूव करते हैं।
प्रॉपर्टी टाइप | होम लोन अप्रोवल आसान? | ब्याज दरें (Interest Rates) | ऋण अवधि (Loan Tenure) |
---|---|---|---|
लीज होल्ड | कम संभावना, डॉक्युमेंट्स ज्यादा चाहिए | थोड़ी अधिक | लीज की बची अवधि तक सीमित |
फ्री होल्ड | बहुत आसान, डॉक्युमेंटेशन सिंपल | नॉर्मल/लोअर रेट्स | 20-30 साल तक संभव |
अन्य वित्तीय बातें जो ध्यान रखें:
- ट्रांसफर फीस: लीज होल्ड में अक्सर ट्रांसफर फीस या नवीनीकरण शुल्क देना पड़ता है जबकि फ्री होल्ड में ऐसा नहीं होता।
- किराया/लीज रेंट: लीज होल्ड प्रॉपर्टी पर हर साल लीज रेंट देना पड़ सकता है। फ्री होल्ड में यह खर्चा नहीं होता।
- दीर्घकालिक सुरक्षा: फ्री होल्ड निवेश दीर्घकालिक रूप से अधिक सुरक्षित मानी जाती है।
इस तरह देखा जाए तो यदि आप लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट और उच्च वैल्युएशन के नजरिए से देख रहे हैं तो फ्री होल्ड प्रॉपर्टी बेहतर साबित होती है जबकि बजट व अन्य कारणों से कुछ लोग लीज होल्ड विकल्प भी चुन सकते हैं। दोनों के फायदे-नुकसान अपनी जगह हैं, इसलिए निवेश से पहले सभी वित्तीय बातों का तुलनात्मक विश्लेषण जरूर करें।
5. भारत के विभिन्न राज्यों में कानूनी अंतर और स्थानीय उपयोग
अलग-अलग राज्यों और महानगरों में लीज होल्ड और फ्री होल्ड के कानूनी तथा सांस्कृतिक पहलुओं के अंतर
भारत एक विविधता से भरा देश है, जहां हर राज्य की अपनी कानूनी व्यवस्था और प्रॉपर्टी रजिस्ट्रेशन से जुड़े नियम होते हैं। लीज होल्ड और फ्री होल्ड प्रॉपर्टी की वैधता, अधिकार और जिम्मेदारियां राज्यों और महानगरों के हिसाब से बदल जाती हैं। इस वजह से खरीदारों को अपने राज्य या शहर की स्थानीय नीतियों को समझना बेहद जरूरी है। नीचे दिए गए टेबल में कुछ प्रमुख राज्यों और शहरों में लीज होल्ड एवं फ्री होल्ड प्रॉपर्टी के कानूनी तथा सांस्कृतिक अंतर का संक्षिप्त विवरण दिया गया है:
राज्य/शहर | लीज होल्ड प्रॉपर्टी (लीगल फीचर्स) | फ्री होल्ड प्रॉपर्टी (लीगल फीचर्स) | स्थानीय उपयोग व संस्कृति |
---|---|---|---|
दिल्ली | DLF, NDMC आदि द्वारा जमीन पर 99 साल तक की लीज़; ट्रांसफर में सरकार की मंजूरी जरूरी | सीधा मालिकाना हक; ट्रांसफर आसान; म्युनिसिपालिटी के तहत रजिस्ट्री | लीज होल्ड फ्लैट्स आम हैं; कन्वर्जन स्कीम्स चलती रहती हैं |
मुंबई (महाराष्ट्र) | MIDC व MHADA जैसी संस्थाओं द्वारा दी जाने वाली लीज; इंडस्ट्रियल एरिया में ज्यादा प्रचलन | फ्री होल्ड बंगले व अपार्टमेंट्स; ओनरशिप अधिक सुरक्षित मानी जाती है | महंगे इलाकों में लीज होल्ड विकल्प चुनना पड़ता है |
उत्तर प्रदेश (नोएडा/ग्रेटर नोएडा) | Noida Authority द्वारा 90-99 साल की लीज; रीसेल व मॉर्गेज सीमित होती है | फ्री होल्ड प्रॉपर्टी कम लेकिन मांग बढ़ रही है; ट्रांसफर चार्जेस कम | अधिकांश सोसाइटीज़ लीज पर आधारित हैं, कन्वर्जन स्कीम लोकप्रिय हैं |
बेंगलुरु (कर्नाटक) | BDA द्वारा कुछ क्षेत्रों में लीज आधारित प्लॉट्स; अवधि पूरी होने पर रिन्यूअल जरूरी | फ्री होल्ड अधिक पसंद किया जाता है; बैंकों से ऋण पाना आसान | नए घर खरीदने वाले अधिकतर फ्री होल्ड को प्राथमिकता देते हैं |
कोलकाता (पश्चिम बंगाल) | KMC व अन्य सरकारी एजेंसियों द्वारा दी जाने वाली लीज; 30-99 साल तक के लिए उपलब्ध | फ्री होल्ड कम लेकिन विरासत संपत्ति आमतौर पर फ्री होल्ड होती है | पुराने घर अधिकतर फ्री होल्ड, नए प्रोजेक्ट्स में लीज ट्रेंड बढ़ा है |
स्थानीय नियमों का महत्व क्यों?
हर राज्य का भूमि अधिनियम, नगर निगम के नियम और हाउसिंग अथॉरिटीज़ की पॉलिसियाँ अलग होती हैं। किसी भी प्रॉपर्टी खरीद या निवेश से पहले वहां के स्थानीय नियम, ट्रांसफर प्रक्रिया, टैक्सेशन एवं कन्वर्जन चार्जेस अच्छी तरह जान लें। दिल्ली जैसे महानगरों में अक्सर लीज होल्ड को फ्री होल्ड में कन्वर्ट करने की योजनाएं आती रहती हैं, जबकि दक्षिण भारत में लोग सीधे फ्री होल्ड प्रॉपर्टी लेना पसंद करते हैं। इसलिए अपने बजट, जरूरत और भविष्य की योजनाओं के अनुसार ही सही विकल्प चुनें।
6. समाप्ति और मालिकाना हस्तांतरण प्रक्रिया
भारत में लीज होल्ड और फ्री होल्ड प्रॉपर्टी की समाप्ति और मालिकाना हक के ट्रांसफर की प्रक्रिया अलग होती है। इन दोनों में EMI, म्युटेशन, ट्रांसफर या कन्वर्ज़न से जुड़े कानूनी नियम भी भिन्न होते हैं। नीचे दी गई तालिका में इन प्रमुख अंतर को आसानी से समझाया गया है:
विशेषता | लीज होल्ड प्रॉपर्टी | फ्री होल्ड प्रॉपर्टी |
---|---|---|
मालिकाना हक का ट्रांसफर | लीज अवधि पूरी होने पर ही ट्रांसफर संभव, अथॉरिटी की मंजूरी जरूरी | आसान ट्रांसफर, सिर्फ सेल डीड या गिफ्ट डीड द्वारा सीधे म्युटेशन |
म्युटेशन (नामांतरण) | संबंधित प्राधिकरण की सहमति आवश्यक, अतिरिक्त फीस लग सकती है | स्थानीय नगर निगम/पंचायत में सामान्य प्रक्रिया, कम समय में नामांतरण |
EMI पर खरीदारी | कुछ बैंक सीमित EMI सुविधा देते हैं; लीज अवधि मायने रखती है | अधिकांश बैंक फाइनेंसिंग आसान करते हैं; EMI में कोई बंधन नहीं |
कन्वर्ज़न (लीज से फ्री होल्ड) | सरकारी पॉलिसी के अनुसार कन्वर्ज़न शुल्क देकर फ्री होल्ड में बदला जा सकता है | यह प्रक्रिया लागू नहीं होती |
समाप्ति (Expiry) | लीज पीरियड खत्म होने पर संपत्ति वापस अथॉरिटी को चली जाती है, रिन्यूअल का विकल्प होता है | कोई समाप्ति नहीं, हमेशा के लिए मालिकाना हक मिलता है |
भारत में लीज होल्ड व फ्री होल्ड संपत्ति का ट्रांसफर कैसे करें?
लीज होल्ड: अगर आप लीज होल्ड प्रॉपर्टी ट्रांसफर करना चाहते हैं तो सबसे पहले संबंधित अथॉरिटी (जैसे DDA, LDA या नोएडा अथॉरिटी) से अनुमति लेनी होती है। साथ ही नॉमिनेशन या सब-लीज एग्रीमेंट तैयार करना पड़ता है। इस प्रक्रिया में कुछ अतिरिक्त डॉक्युमेंट्स और फीस लगती है।
फ्री होल्ड: इसमें सीधी बिक्री (सेल डीड), गिफ्ट या वसीयत के जरिए ट्रांसफर किया जा सकता है। बस रजिस्ट्री करानी होती है और फिर स्थानीय नगर निगम/पंचायत में म्युटेशन के लिए आवेदन देना होता है। यह प्रक्रिया तेज और सरल होती है।
EMI और बैंक लोन का असर
लीज होल्ड: बैंक लोन देने से पहले लीज अवधि को ध्यान में रखते हैं। यदि लीज शेष अवधि कम रह गई तो बैंक लोन देने से इंकार कर सकते हैं।
फ्री होल्ड: यह संपत्ति अधिक सुरक्षित मानी जाती है, इसलिए बैंक आसानी से लोन अप्रूव कर देते हैं। EMI विकल्प भी ज्यादा मिलते हैं।
कन्वर्ज़न प्रोसेस: लीज से फ्री होल्ड में बदलना कैसे संभव?
अगर आपकी संपत्ति लीज होल्ड कैटेगरी की है, तो कुछ राज्यों में सरकार आपको कन्वर्ज़न स्कीम देती है जिसमें निर्धारित शुल्क और डॉक्युमेंट्स के आधार पर इसे फ्री होल्ड कराया जा सकता है। इसके बाद सभी अधिकार आपके पास स्थायी रूप से आ जाते हैं।
7. निष्कर्ष और सही विकल्प चुनने की सलाह
जब भी आप भारत में प्रॉपर्टी खरीदने का सोचते हैं, तो लीज होल्ड और फ्री होल्ड प्रॉपर्टी के बीच का अंतर समझना बहुत जरूरी है। दोनों के अपने-अपने फायदे और नुकसान हैं, जो आपके बजट, ज़रूरत और भविष्य की योजनाओं पर निर्भर करते हैं। नीचे एक आसान तालिका दी गई है जिससे आपको समझने में सुविधा होगी:
पैरामीटर | लीज होल्ड प्रॉपर्टी | फ्री होल्ड प्रॉपर्टी |
---|---|---|
मालिकाना हक | समयसीमा तक सीमित (जैसे 99 साल) | स्थायी व पूरी तरह से मालिकाना हक |
स्थानांतरण/बेचना | सरकारी अनुमति की जरूरत पड़ सकती है | स्वतंत्र रूप से ट्रांसफर या बेच सकते हैं |
कीमत | आमतौर पर सस्ती होती है | महंगी होती है लेकिन निवेश के लिए बेहतर |
ऋण प्राप्ति | कभी-कभी दिक्कत आती है | आसानी से ऋण मिल जाता है |
कानूनी प्रक्रिया | थोड़ी जटिल हो सकती है | साधारण प्रक्रिया होती है |
भारतीय संदर्भ में कानूनी और सांस्कृतिक बातें जिनका ध्यान रखें:
- भूमि रिकॉर्ड्स जांचें: जमीन या संपत्ति की असली मालिकाना स्थिति व सरकारी रिकॉर्ड्स जरूर देखें। कई बार गलत दस्तावेज़ों के चलते विवाद हो जाते हैं।
- समाज और पड़ोस की छवि: भारतीय संस्कृति में आस-पड़ोस का माहौल, जाति, धर्म और सामाजिक स्तर मायने रखता है। प्रॉपर्टी लेते समय इन बातों का भी ध्यान रखें।
- विरासत कानून: यदि संपत्ति संयुक्त परिवार की है या किसी विरासत में मिली है, तो सभी कानूनी वारिसों से अनुमति लेना जरूरी है। वरना आगे चलकर विवाद हो सकते हैं।
- स्थानीय पंचायत या RWA नियम: ग्रामीण क्षेत्रों में ग्राम पंचायत और शहरी कॉलोनियों में रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन के नियम भी देख लें। ये कभी-कभी प्रॉपर्टी उपयोग को प्रभावित कर सकते हैं।
- स्टांप ड्यूटी और पंजीकरण शुल्क: अलग-अलग राज्यों में स्टांप ड्यूटी अलग होती है, इसलिए बजट बनाते समय इसका ध्यान रखें। बिना रजिस्ट्रेशन के प्रॉपर्टी अधिकार सुरक्षित नहीं होते।
- रीसेल वैल्यू: अगर भविष्य में बेचने का विचार रखते हैं तो फ्री होल्ड प्रॉपर्टी आमतौर पर ज्यादा लाभ देती है।
- बैंक ऋण पात्रता: बैंकों से लोन लेने में फ्री होल्ड ज्यादा आसान रहती है, जबकि लीज होल्ड में दस्तावेज़ों की जांच कड़ी होती है।
- वास्तुशास्त्र: भारतीय खरीदार वास्तुशास्त्र को भी महत्व देते हैं; यह सांस्कृतिक पहलू अक्सर निर्णय को प्रभावित करता है।
सही विकल्प कैसे चुनें?
- अपनी प्राथमिकता तय करें: अगर आप लंबे समय तक निवेश चाहते हैं और बिना किसी रोक-टोक के संपत्ति बेचना/ट्रांसफर करना चाहते हैं तो फ्री होल्ड चुनें। अल्पकालिक निवेश या कम बजट होने पर लीज होल्ड एक विकल्प हो सकता है।
- कानूनी सलाह लें: खरीदारी से पहले किसी अनुभवी वकील से दस्तावेज़ों की जांच अवश्य करवाएं, खासकर संयुक्त परिवार या पुरानी संपत्तियों के मामलों में।
- पारिवारिक और सामाजिक राय जानें: भारतीय संस्कृति में परिवार की राय मायने रखती है, इसलिए घर खरीदते वक्त सबकी राय लें ताकि बाद में कोई समस्या न आए।